होलिका दहन 2020 कहानी और मुहूर्त

आप सभी को होलिका दहन की हार्दिक शुभकामनाएं।



आइए जानते हैं कि क्यों मनाई जाती है होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन और होलिका दहन से जुड़ी कहानी... 

होलिका दहन की कहानी :

होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई के जीत के रुप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन होलिका नामक राक्षसी की मृत्यु हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग काल में हिरणकश्यप नामक एक बहुत ही अभिमानी राजा हुआ करता था और अपनी शक्तियों के मय में चूर होकर वह स्वंय को भगवान समझने लगा था। वह चाहता था, हर कोई भगवान की जगह उसकी पूजा करे लेकिन स्वंय उसके पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करना से इंकार कर दिया और भगवान को ही असली ईश्वर बताया।
इस बात से नाराज होकर हिरणकश्यप ने प्रहलाद को कई सारी सजा दी, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार प्रहलाद रक्षा की और इस तरह से अपने सारी योजनाएं विफल होते देख, हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रहलाद को अग्नि में जलाकर मारने की योजना बनाई। जिसमें होलिका प्रहलाद को लेकर चिता पर बैठी परन्तु क्योंकि होलिका को अग्नि में ना जलने का वरदान प्राप्त था, क्योंकि वरदान स्वरुप उसे ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नही जलती थी।
इसलिए हिरणकश्यप को लगा की होलिका अग्नि में सुरक्षित बच जायेगी और प्रहलाद जल जायेगा। लेकिन जैसी ही होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि समाधि में बैठी वह चादर वायु के वेग से उड़कर प्रहलाद पर जा पड़ी और होलिका शरीर पर चादर ना होने के वजह से वह वहीं जलकर भस्म हो गई।इसके पश्चात भगवान विष्णु नरसिंह अवतार के रुप में प्रकट हुए क्योंकि हिरणकश्यप को ब्रम्हा जी से वरदान मिला हुआ था कि “ना वह दिन मरेगा, ना रात में मरेगा, ना जमीन पर मरेगा, नाही आकाश में मरेगा,......... नाही देव के हाथों मरेगा, ना मनुष्य के और नाही किसी जानवर या दानव के हाथों।”
जब भगवान विष्णु नरसिंह के अवतार में प्रकट हुए तो उन्होंने कहा कि मैं हर जगह रहता हुं, मैं तुझ जैसे राक्षस के महल में भी रहता और मैं स्वंय तेरे अंदर भी हुं, मैं अपवित्र को पवित्र करता हुं, लेकिन अपवित्र मुझे अपवित्र नही कर सकता और ले देख अपने काल को “नाही यह दिन है, नाही रात है, नाही मैं नर हु और नही पशु.......... नाही तेरी मृत्यु जमीन पर होगी नाही आकाश में।” इतना कहकर भगवान नरसिंह ने हिरणकश्यप का सीना चीर कर उसे मार डाला। तभी से इस दिन बुराई पर अच्छाई के जीत के रुप में होलिका दहन का पर्व मनाया जाने लगा।

कब मनाई जाती है होलिका दहन :

होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।

होलिका दहन 2020 के शुभ मुहूर्त और पूजन सामग्री 


होलिका दहन का शास्त्रों के अनुसार नियम : 

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
 1. पहला, उस दिन 'भद्रा' न हो। भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।
 2. दूसरी बात, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

यह है होलिका दहन का शुभ और मंगलमयी मुहूर्त :

शाम 6.22 बजे से रात 8.49 बजे 
भद्रा पूंछ : सुबह 9.50 से 10.50 
भद्रा मुख : सुबह 10.51 बजे से दोपहर 12.32 बजे तक।

पूजा सामग्री: 

👉 एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि। इसके अलावा नई फसल के धान्यों जैसे पके चने की बालियां व गेहूं की बालियां भी सामग्री के रूप में रखी जाती हैं।
👉इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा खिलौने को रखा जाता है।
👉जल, मौली, फूल, गुलाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर में लाकर सुरक्षित रख ली जाती हैं।
👉 इनमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमानजी के नाम की, तीसरी शीतलामाता के नाम की तथा चौथी अपने घर परिवार के नाम की होती है।
👉इसके बाद कच्चे सूत्र लें उसे होलिका के चारों तरफ तीन या 7 परिक्रमा करते हुए लपेटे।
👉इसके बाद लोटे में भरे हुए शुद्ध जल व अन्य सभी सामग्रियों को एक एक करते होलिका को समर्पित करें।
👉इसके बाद गंध पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करें। पूजन के बाद जल से अर्घ्य दें।
👉होलिका दहन के बाद उसकी अग्नि में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे, चीनी के खिलौने, नई फसल के कुछ भाग की आहुति दी जाती है। इसी के साथ गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर भी जरूर अर्पित करें।
👉होली की भस्म घर में लाकर रख लें। फिर अगले दिन यानी रंग वाली होली पर सुबह जल्दी उठकर पितरों के लिए तर्पण पूजन करना चाहिए। साथ ही सभी दोषों से मुक्ति पाने के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर पर लगा लेना चाहिए।
👉फिर घर के आंगन में चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

होलिका पूजन मंत्र :

अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्तां पूजयिष्यामि भूति भूति प्रदायिनीम।

आशा करता हूं कि ये आपके जीवन के लिए सिद्द साबित हो...!!
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🙏 🙏 जय हिंद जय भारत 🙏 🙏 

🇮🇳🇮🇳 वंदे मातरम् 🇮🇳 🇮🇳


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