मंगल पाण्डेय एक परिचय (बलिदान दिवस - 2020)
मंगल पाण्डेय एक लाइन : मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वोे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया।
जीवन परिचय :
मंगल पाण्डेय का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में 19 जुलाई 1827 को एक "भूमिहार ब्राह्मण" परिवार में हुआ था। हांलाकि कुछ इतिहासकार इनका जन्म-स्थान फैज़ाबाद के गांव सुरहुरपुर को मानते हैं। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। जमींदार ब्राह्मण को भूमिहार कहा जाता है। "भूमिहार ब्राह्मण" होने के बाद भी मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए।
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मंगल पाण्डेय ने इसी एन्फील्ड राइफल का प्रयोग 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में किया था |
ईस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज हड़प और फिर इशाई मिस्नरियों द्वारा धर्मान्तर आदि की नीति ने लोगों के मन में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति पहले ही नफरत पैदा कर दी थी और जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ गया। इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। उनके मन में ये बात घर कर गयी कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने पर अमादा हैं क्योंकि ये हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए नापाक था।
भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से पहले से ही भारतीय सैनिकों में असंतोष था और नई कारतूसों से सम्बंधित अफवाह ने आग में घी का कार्य किया। 9 फरवरी 1857 को जब ‘नया कारतूस’ देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म हुआ। मंगल पाण्डेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और 29 मार्च सन् 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी शासन के लिए घातक सिद्ध हुआ और मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया।
आक्रमण करने से पहले मंगल ने अपने अन्य साथियों से समर्थन का आह्वान भी किया था पर डर के कारण जब किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया तो उन्होंने अपनी ही रायफल से उस अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया जो उनकी वर्दी उतारने और रायफल छीनने को आगे आया था। इसके बाद पांडे ने एक और अँगरेज़ अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को मौत के घात उतार दिया जिसके बाद मंगल पाण्डेय को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड लिया। उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुना दी गयी। फैसले के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फाँसी दी जानी थी, पर ब्रिटिश सरकार ने मंगल पाण्डेय को निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ही 8 अप्रैल सन् 1857 को फाँसी पर लटका दिया।
मंगल पांडे और भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम :
जैसा की पहले बताया जा चुका है कि भारत के लोगों में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति विभिन्न कारणों से घृणा बढ़ती जा रही थी और मंगल पांडे के विद्रोह ने एक चिन्गारी का कार्य किया। मंगल द्वारा विद्रोह के ठीक एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की सैनिक छावनी में भी बगावत हो गयी और यह विद्रोह देखते-देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया।
इस बगावत और मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। यद्यपि अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए, लेकिन मंगल द्वारा 1857 में बोया गया क्रांति का बीज 90 साल बाद आजादी के वृक्ष के रूप में तब्दील हो गया।
इस विद्रोह (जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है) में सैनिकों समेत अपदस्थ राजा-रजवाड़े, किसान और मजदूर भी शामिल हुए और अंग्रेजी हुकुमत को करारा झटका दिया। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे।
आधुनिक युग में मंगल पांडे :
मंगल पांडे के जीवन के पर फिल्म और नाटक प्रदर्शित हुए हैं और पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं। सन 2005 में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान द्वारा अभिनित ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया था। सन 2005 में ही ‘द रोटी रिबेलियन’ नामक नाटक का भी मंचन किया गया। इस नाटक का लेखन और निर्देशन सुप्रिया करुणाकरण ने किया था।
जेडी स्मिथ के प्रथम उपन्यास ‘वाइट टीथ’ में भी मंगल पांडे का जिक्र है।
सन 1857 के विद्रोह के पश्चात अंग्रेजों के बीच ‘पैंडी’ शब्द बहुत प्रचलित हुआ, जिसका अभिप्राय था गद्दार या विद्रोही।
भारत सरकार ने 5 अक्टूबर 1984 में मंगल पांडे के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
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आशा है कि आप सभी लोगों को इतिहास और राजनीतिक शास्त्र में सहायक सिद्ध होगा... 🙏 🙏
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